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धन की माया - लेखनी प्रतियोगिता -01-Jun-2022

धन की माया

कैसी अद्भुत धन की माया
राजा रंक कोई बच ना पाया
जो भी इसके मोह में जकड़ा
रोता रहे सदा अपना दुखड़ा। 

फँसता जो भी इसके दंभ में
मानव बनता दानव मगरूर
उचित अनुचित समझ न पाता
हो जाता धन के घमंड में चूर।

ऊंच-नीच की गहरी खाई
वह सदा मन में उपजाता 
भेदभाव को बसाकर दिल में
खुद को माने भाग्य विधाता। 

 करता गरीबों पर अत्याचार
 बढ़ता शोषण और भ्रष्टाचार
 चढ़ता सर पर पाप का भार 
 समझ न पाए जीवन सार। 

 ये महाभारत का युद्ध कराये 
कुरुक्षेत्र से इससे बच ना पाये 
मानव समझो यह धन माया
व्यर्थ करो ना मानव काया। 


 स्वरचित व मौलिक रचना
 डॉ.अर्पिता अग्रवाल
 नोएडा, उत्तर प्रदेश

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14 Comments

Shrishti pandey

02-Jun-2022 05:15 PM

Nice

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Seema Priyadarshini sahay

02-Jun-2022 10:56 AM

बेहतरीन👌👌 बहुत दिनों बाद कैसी हैं आप?

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Dr. Arpita Agrawal

02-Jun-2022 01:08 PM

अब अच्छी हूँ, आप कैसी हैं

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Seema Priyadarshini sahay

02-Jun-2022 04:03 PM

बिल्कुल ठीक मैम😊

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Punam verma

02-Jun-2022 09:02 AM

Nice

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